अष्टावक्र गीता-दोहे -12

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अष्टावक्र गीता-12 माया कल्पित विश्व यह,माने प्रज्ञावान। विगत कामना को कहाँ,डर न, मृत्यु ध्रुव जान।। रहे भले नैराश्य में,फिर भी नहीं उदास। महा आत्मा-अनिछ जग,किससे तुले,न आस।। बिना किसी अस्तित्व के,दृश्यमान ...

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